Special Report: बड़ी महामारी के खिलाफ मिसाल बनते छोटे देश

Special Report: बड़ी महामारी के खिलाफ मिसाल बनते छोटे देश

नरजिस हुसैन

कोरोना वायरस के संकट की इस घड़ी में क्यूबा औऱ सिंगापुर पूरी दुनिया के लिए मिसाल बनते जा रहे हैं। इन दोनों ही देशों ने स्वास्थ्य और शिक्षा को अपने यहां सबसे ज्यादा तरजीह दी है। और यही वजह है कि दोनों ही देशों में सरकार हर नागरिक की जिंदगी की कीमत समझती है और उसकी इज्जत करती है। इन्हें मालूम है कि कसी भी देश को आगे ले जाने में उसकी आबादी एक मजबूत हथियार है न कि बोझ।

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क्यूबा

कम्युनिस्ट देश क्यूबा इन दिनों दुनिया के कई नामी मुल्कों को कोरोना के खिलाफ जंग में मदद कर रहा है। कोरोना की सबसे ज़्यादा मार झेल रहे इटली की मदद के लिए क्यूबा ने अपने डॉक्टरों और नर्सों की एक टीम भेजी है। हालांकि इटली का स्थान स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में युरोप में सबसे ऊपर आता है। इटली में इस बीमारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित प्रांत लॉम्बार्डी में कोरोना का इंतेहाई कहर है। जब स्थानीय इटली सरकार से हालात नहीं संभले तो उसने क्यूबा से मदद मांगी। अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जिम्मेदारियों में समर्पित क्यूबा ने फौरन इटली में अपने डॉक्टरों-नर्सों की टीम रवाना कर दी।   

क्यूबा ने सिर्फ इटली की ही मदद नहीं की बल्कि मुसीबत की इस घड़ी में 12 मार्च को बहामास के पास हज़ार यात्रियों से भरा एक ब्रिटिश क्रूज़ बीच समंदर में संकट में फंस गया। शिप में मौजूद करीब  50 यात्रियों और क्रू मेंबर्स में कोरोनावायरस के लक्षण देखे गए। ख़बर ने शिप पर अफरा-तफरी का माहौल बना दिया। जिस बहामास के लिए ये क्रूज़ रवाना हुआ था, उसने कह दिया कि वो अपने किसी भी बंदरगाह पर इसे आने नहीं देगा। बहामास के अलावा बाक़ी देशों से भी बात की गई, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। आख़िरकार क्यूबा को याद किया गया और क्यूबा ने एमएस ब्रीमर नाम के इस जहाज़ को न सिर्फ़ पनाह दी, बल्कि उसमें मौजूद सभी यात्रियों और क्रू मेंबर्स के इलाज की भी ज़िम्मेदारी ली। 

दुनिया के बाक़ी देशों की तरह क्यूबा भी इस वक्त कोरोनावायरस से लड़ रहा है। जिस वक़्त क्यूबा ब्रिटिश शिप की मदद कर रहा था उसी वक़्त क्यूब में इटली के तीन पर्यटक कोरोनावायरस का इलाज करवा रहे थे। बाद में उनमें से एक की मौत हो गई। सरकार ने वहां हर तरह के सांस्कृतिक और खेल आयोजनों को पूरी तरह बंद कर दिया। क्यूबा ने इसके बाद विदेशियों के लिए अपनी सीमा सील कर दी। क्यूबा इस मामले में ज़रा भी ढिलाई नहीं बरत रहा है। जिस व्यक्ति पर भी शक है, उसकी पूरी जांच की जा रही है।

मेडिकल में क्यूबा के योगदान का कोई सानी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय आपातकाल से लड़ने के लिए ये देश हमेशा आगे आया है। क्यूबन बायोटेक उद्योग ने इंटरफेरॉन अल्फ़ा 2बी नामक दवाई बनाई है जिसे इम्यून सिस्टम को मज़बूत करने में बेहद कारगर बताया जा रहा है। इससे पहले डेंगू, एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों में इस दवा का बड़े पैमाने पर दुनियाभर में इस्तेमाल हुआ है।

चीन में जब कोरोनावायरस का ख़तरा बेहद गंभीर हो गया तो उसने क्यूबा से यही दवाई मंगवाई थी। बाक़ी कई देश भी क्यूबा से ये दवाई ले रहे हैं। 2014-2016 में जब अफ्रीकी देशों पर इबोला का कहर तो क्यूबा ने पश्चिमी अफ्रीकी देशों में अपने डॉक्टरों की पूरी फौज खड़ी की थी. उससे पहले हैती में हैजा के ख़िलाफ़ क्यूबा ने जिस तरह का काम किया, उसकी पूरी दुनिया ने तारीफ की थी।

इटली से पहले क्यूबा के डॉक्टर्स वेनेज़ुएला, निकारागुआ, जमैका, सूरीनाम और ग्रेनेडा में सफलतापूर्वक अपना मिशन खत्म कर चुके हैं। क्यूबा की स्वास्थ्य सुविधा की पूरी दुनिया कायल है। अमेरिका की तरफ़ से आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे क्यूबा ने अभी भी हार नहीं मानी है और कोरोनावायरस की चुनौती से निपटने के लिए वो अमेरिका के ही मित्र-राष्ट्रों की मदद से नहीं हिचक रहा है।

दक्षिण कोरिया

इसी तरह 5 करोड़ की आबादी वाले एक छोटे से देश दक्षिण कोरिया ने भी कोरोना के खिलाफ जंग में दुनिया के सामने खुद को एक मिसाल के तौर पर पेश किया है। कोरोना संक्रमण को फैलने से तेजी से रोकने के चलते ही अब दुनियाभर में इसे साउथ कोरिया मॉडल के नाम से भी जाना जा रहा है। जनवरी के आखिरी हफ्ते में यहां कोरोना के सिर्फ चार ही मरीज थे जहां बाद में यानी 30 मार्च तक नौ हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए लेकिन मौत सिर्फ 158 की ही हुई। वजह पूरी दुनिया में अकेले साउथ कोरिया ही एक ऐसा देश था जहां सबसे ज्यादा (तीन लाख) लोगों की जांच की गई। नार्वे जिसकी खुद शानदार मेडिकल सर्विसेज है वह भी अब साउथ कोरिया मॉडल अपनाने की सोच रहा है।

साउथ कोरिया का मानना था कि जितनी जल्दी जांच होगी उतनी ही जल्दी इलाज शुरू होगा और संक्रमण फैलने से रूक सकेगा। पूरे देश में कुल 600 जांच सेंटर खोले गए। नगारिकों को जागरूक करने के साथ ही मुफ्त मास्क और सैनिटाइजर भी बांटे गए। हर जगह यानी सार्वजनिक जगहों पर भी थर्मल कैमरे लगाए गए। सरकार ने कंपनियों से युद्धस्तर पर जल्द से जल्द जांच किट भी बनाने के आदेश जारी किए। संक्रमण पर जल्द काबू पाने के लिए मरीज की कार के जीपीएस डेटा, फोन डेटा और सेक्युरिटी कैमरे भी चेक किए गए। इस प्रक्रिया को कांटेक्ट ट्रेसिंग कहा जाता है। इसके बाद संभावित मरीजो को क्वारेंटाइन में डाला जाता है। यानी यहां स्वास्थ्य कर्मी जासूसों की तरह भी काम कर रहे थे। कोरिया ने 17 से ज्यादा देशों को जांच किट देने की पेशकश भी की है। हालांकि, साउथ कोरिया में यह वायरस एक परिवार के जरिए 17 दिसंबर, 2019 में आ चुका था और तभी डॉक्टरों और रिसर्चरस  ने इस परिवार से मिलकर तभी से वायरस की जांच का काम शुरू कर दिया था जिसके बाद ही 20 जनवरी को सरकार ने देश की सभी दवा कंपनियों को कोरोना जांच किट बनाने के सरकार ने आदेश दिए थे। इस तरह पूरी जागरुकता और शानदार रणनीति की मदद से साउथ कोरिया ने कोरोना से यह जंग जीती।

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सिंगापुर

हिंद महासागर में बसे एक छोटे से देश सिंगापुर ने भी कोरोना से लड़ने में पूरी दुनिया में अपने जज्बे का लोहा मनवाया। 56-57 लाख की आबादी वाले इस मुल्क का सबसे ज्यादा कारोबार चीन से ही चलता है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को कोरोना को महामारी घाषित किया और इससे पहले ही 23 जनवरी को सिंगापुर में यह दाखिल हो चुका था। वहीं 21 जनवरी को यह वायरस अमेरिका में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका था। सिंगापुर उस वक्त तक तीसरा देश था जहां कोरोना मौजूद था। 27 मार्च तक यहा 683 मरीज था और दो मौतें थी वहीं अमेरिका में 81,500 मरीज थे और एक हजार से ज्यादा लोग जान दे चुके थे। सिंगापुर ने कोरोना से लड़ने के लिए अच्छी रणनीति बनाई और उसे पूरी तत्परता से अमल भी किया। देश ने एक फरवरी को अपनी सीमाएं बंद कर दी थी जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी जरूरत नहीं बताई थी। 2003 में सार्स के बाद से ही सिंगापुर ने अपनी स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़िया कर दी थी। बीमारियों और संक्रमण पर रिसर्च, स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करना और अस्पताल और डॉक्टर और नर्सों की बड़ी फौज इस देश से पहले ही खड़ी कर दी थी। कोरोना का पूरा खर्च सरकार ने खुद उठाया और क्वारांटाइन को न मानने वालों को कड़ी सजाएं भी दी। ऐप भी लांच किया, कठोर नियम बनाए, जगह-जगह पर सैनेटाइजर सेंटर खोले गए जहां नागरिकों को मुफ्त में सैनेटाइजर देने के साथ फुर्ती से काम किया।

कोरोना ने देश की सबसे बड़ी इकॉनामीज की पोल खोल दी है। अमेरिका, युरोप और आस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों के पैसे भी आज उनके नागरिकों को कोरोना से नहीं बचा पा रहे हैं। इन सब देशों ने ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में स्वास्थ्य को तरजीह न देना सही समझा था। लेकिन, भारत उसका क्या वह तो इस दौड़ में अभी बहुत पीछे है। देखना ये है कि कोरोना क्या हमारे लिए एक वेक अप कॉल साबित होगा या नहीं।

 

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